उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर, अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल बैकुंठ चतुर्दशी के दिन निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए विशेष पूजा अर्चना करते हैं। जानें इस मंदिर का इतिहास, भगवान राम और भगवान विष्णु से जुड़ी मान्यताएं, और यहां होने वाले प्रमुख धार्मिक आयोजन।
बैकुंठ चतुर्दशी के उपलक्ष्य में हर साल पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में विशाल मेला आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर, बाबा कमलेश्वर महादेव जी के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया, जिसमें 1008 कमल पुष्प अर्पित कर बाबा की पूजा की गई। यह पूजा आयोजन श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है, क्योंकि माना जाता है कि इस अवसर पर विशेष पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, खासकर महिलाओं के लिए।
श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि रावण वध के बाद भगवान श्रीराम गुरु वशिष्ठ की आज्ञा अनुसार भगवान शिव की उपासना के लिए इस स्थान पर आए थे। इस स्थान पर आकर उन्होंने 108 कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा की थी, जिसके बाद से मंदिर का नाम कमलेश्वर पड़ा।
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मंदिर में अचला सप्तमी (घृत कमल पूजा), महाशिवरात्रि, और बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन दूर-दराज से आए निसंतान दंपत्ति जलते हुए दीपकों को हाथ में लेकर रातभर जागरण और पूजा करते हैं। सुबह दीपक को अलकनंदा में प्रवाहित कर पूजा की जाती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस पूजा से दंपत्तियों की संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।
महंत आशुतोष पूरी के अनुसार, मंदिर के इतिहास में विभिन्न युगों में भगवान विष्णु, श्रीराम और श्री कृष्ण ने भी इस स्थान पर विशेष व्रत किए थे। सतयुग में भगवान विष्णु ने शिव को सहस्त्र कमल चढ़ाकर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, त्रेतायुग में श्रीराम ने 108 कमल चढ़ाए थे, और द्वापर युग में श्री कृष्ण ने जलते दीपक का व्रत किया था, जिसके बाद उन्हें स्वाम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
आज भी बैकुंठ चतुर्दशी के दिन इस मंदिर में विशेष पूजा और व्रत का आयोजन किया जाता है, जो लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर बन चुका है। बैकुंठ चतुर्दशी में श्रद्धालु पूरे उत्साह के साथ शामिल होते हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस आयोजन के दौरान मंदिर परिसर में भव्य श्रद्धा भाव और भक्तिमय वातावरण देखने को मिला।
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