अल्मोड़ा के दर्दनाक बस हादसे में एक 3 साल की मासूम शिवानी ने अपने माता-पिता को खो दिया। मासूम की मासूमियत और उसके गहरे घावों के साथ ही उसके जीवन में आई इस बड़ी क्षति ने हर किसी का दिल दहला दिया है। शिवानी को शायद अब भी यह अहसास नहीं है कि उसके रोने पर अब उसकी मम्मी कभी गोद में नहीं लेंगी, उसके दर्द को कोई अपने आँचल में नहीं समेटेगा। इस हादसे में शिवानी के सिर पर गहरी चोटें आई हैं, पसलियां टूट चुकी हैं, और फेफड़ों में गंभीर जख्म हैं, लेकिन इन सबसे ज्यादा उसकी माँ की कमी का दर्द उसे हर पल तड़पा रहा है।
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इस हादसे ने पहाड़ की यातायात व्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हादसे के समय 40 सीटों वाली बस में 55 लोग सवार थे, जिससे बस में भीड़ का खतरनाक स्तर और सुरक्षा में कमी साफ झलकती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अधिकारी और नेता, जो जनता की सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं के लिए जिम्मेदार हैं, अपने प्रचार और रील बनाने में व्यस्त हैं, जबकि पहाड़ के लोग असुरक्षित ढंग से यात्रा करने को मजबूर हैं।
कुमाऊं के मंडलायुक्त और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर यह सवाल उठता है कि कब वे इन जानलेवा स्थितियों पर ध्यान देंगे। पहाड़ की सड़कों और यातायात व्यवस्था में सुधार की जरूरत को अनदेखा करना आखिर कब तक चलेगा? हादसे की मार्मिकता में घिरे लोग आज इस सवाल का जवाब चाहते हैं कि पहाड़ों में जिंदगी कब तक इस अनिश्चितता और खतरों के साये में जिएगी।
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