श्री ओंकारेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ में स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह मंदिर विशेष रूप से केदारनाथ धाम का शीतकालीन गद्दीस्थल होने के कारण महत्वपूर्ण है। केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद बाबा केदार की पंचमुखी मूर्ति डोली यात्रा के माध्यम से इस मंदिर में लाई जाती है, जहां भक्तजन शीतकाल में भगवान केदारनाथ के दर्शन कर सकते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर का धार्मिक महत्व
ओंकारेश्वर मंदिर का महत्व केवल केदारनाथ का शीतकालीन गद्दीस्थल होने तक सीमित नहीं है; यह मंदिर हिंदू धर्म में शिव की पूजा का एक पवित्र स्थल है। यहां शिवजी की आराधना विशेष महत्व रखती है, और इसे भगवान शिव के उग्र एवं शांत स्वरूपों का संगम स्थल माना जाता है। इस मंदिर में देशभर से हजारों श्रद्धालु हर साल शीतकाल के दौरान दर्शन हेतु आते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर में स्थित मूर्तियाँ
ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चांदी की मूर्ति शीतकाल के दौरान प्रतिष्ठित रहती है, जिसे दिव्य और आलौकिक माना जाता है। इसके अतिरिक्त, मंदिर में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों की अन्य मूर्तियाँ भी हैं, जो इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देती हैं। भगवान केदारनाथ की पंचमुखी मूर्ति विशेष रूप से उखीमठ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय है और यहां नियमित पूजा-अर्चना होती है।
इस मंदिर की विशेषताएँ
ओंकारेश्वर मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यह न केवल भगवान केदारनाथ का शीतकालीन निवास है, बल्कि यहाँ पंचमुखी मूर्ति की पूजा निरंतर होती है, ताकि भक्तों को शीतकाल में भी उनके दर्शन का अवसर मिल सके। पहले, इस मूर्ति को भंडार गृह में रखा जाता था, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के अनुरोध पर अब इसे मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया है, जिससे हर श्रद्धालु को आसानी से दर्शन का लाभ मिल सके।
श्री ओंकारेश्वर मंदिर की स्थापत्य शैली भी ध्यान देने योग्य है। इस मंदिर की संरचना पारंपरिक उत्तराखंडी शैली में है, जो पत्थरों और लकड़ी से निर्मित एक खूबसूरत मंदिर के रूप में उभरती है। यहां की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों के मन को शांति प्रदान करते हैं, और यह स्थान देवभूमि के सांस्कृतिक एवं धार्मिक धरोहर का हिस्सा है।
श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि शिव भक्तों के लिए आस्था का केंद्र और शीतकाल में बाबा केदार के दर्शन का अवसर है। यहां की पंचमुखी मूर्ति, पारंपरिक स्थापत्य, और आध्यात्मिकता इसे देवभूमि के सबसे पवित्र स्थलों में से एक बनाते हैं।
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