रुद्रप्रयाग जिले में स्थित भगवान केदारनाथ धाम में शीतकाल के लिए कपाट बंद होने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।
गुरुवार को परंपराओं का पालन करते हुए मंदिर के हक-हकूकधारियों ने गर्भगृह से भगवान केदारनाथ का छत्र बाहर निकाला। यह विशेष धार्मिक अनुष्ठान कपाट बंदी की दिशा में पहला कदम है, जो हर वर्ष की भांति श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय और आस्था का प्रतीक है। आगामी 3 नवंबर को विधि-विधान के साथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद भगवान केदारनाथ की चल विग्रह प्रतिमा को ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाएगा, जहाँ शीतकाल में भक्तजन भगवान के दर्शन कर सकेंगे।
छत्र निकासी की परंपरा का महत्व
कपाट बंदी से पहले भगवान केदारनाथ का छत्र गर्भगृह से निकालने की परंपरा उत्तराखंड के धार्मिक रीति-रिवाजों में अहम स्थान रखती है। छत्र को निकालने का कार्य हक-हकूकधारियों द्वारा संपन्न किया जाता है और यह धार्मिक कार्य शीतकाल के आगमन का संकेत होता है। शीतकाल में जब केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं, तो भगवान केदारनाथ की पूजा ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ में संपन्न होती है, जहाँ उनकी प्रतिमा को ससम्मान स्थापित किया जाता है। यह परंपरा भगवान केदारनाथ की शीतकालीन यात्रा का प्रतीक मानी जाती है।
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ऊखीमठ में शीतकालीन पूजा की व्यवस्था
कपाट बंद होने के बाद भगवान केदारनाथ की पूजा ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में होती है। शीतकाल के दौरान जब केदारनाथ धाम में अत्यधिक बर्फबारी के कारण यात्रा असंभव हो जाती है, तो भक्तजन ऊखीमठ में भगवान के दर्शन कर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सकते हैं। ऊखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर शीतकाल के दौरान धार्मिक पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन जाता है, जहाँ उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुँचते हैं।
पर्यटन पर असर
केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने का असर क्षेत्र के पर्यटन पर भी पड़ता है। शीतकाल में धाम के बंद हो जाने से यात्रियों की संख्या में कमी आ जाती है, क्योंकि भारी बर्फबारी के चलते धाम तक पहुंचना कठिन हो जाता है। हालाँकि, ऊखीमठ में भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का आना-जाना जारी रहता है, जिससे क्षेत्र की धार्मिक गतिविधियाँ और पर्यटन एक अलग रूप में जारी रहता है।
केदारनाथ धाम की यह शीतकालीन प्रक्रिया उत्तराखंड की परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आस्था और विश्वास की गहरी जड़ें दर्शाती है। भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, और शीतकाल में ऊखीमठ में उनकी उपस्थिति इस आस्था की अभिव्यक्ति है।
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