केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव का बिगुल बजते ही, राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है। इस वर्ष नौ जुलाई को केदारनाथ की विधायक शैलारानी रावत के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। चुनाव आयोग की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है और 20 नवंबर 2024 को मतदान होना है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर रही हैं, जहां एक बार फिर से केदारनाथ सीट पर वर्चस्व की जंग छिड़ चुकी है।
केदारनाथ विस सीट: भाजपा और कांग्रेस का मुकाबला
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2002 में पहली बार केदारनाथ विस सीट पर चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा की आशा नौटियाल ने कांग्रेस की शैलारानी रावत को हराकर जीत दर्ज की। इसके बाद 2007 में भी भाजपा ने आशा नौटियाल को ही प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस के कुंवर सिंह नेगी को हराया। हालांकि, 2012 में कांग्रेस की शैलारानी रावत ने जीत हासिल की और कांग्रेस का परचम लहराया।
2017: भाजपा में विद्रोह और चुनावी उतार-चढ़ाव
वर्ष 2017 में भाजपा ने शैलारानी रावत को टिकट दिया, लेकिन आशा नौटियाल निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरीं। नतीजा यह हुआ कि भाजपा चौथे स्थान पर खिसक गई, जबकि कांग्रेस के मनोज रावत पहली बार विस में पहुंचे। इस दौरान आशा नौटियाल को पार्टी से निलंबित कर दिया गया था।
2022 में शैलारानी रावत की वापसी
2022 में, भाजपा ने फिर से शैलारानी रावत पर विश्वास जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बनाया। उन्होंने भाजपा के खोए हुए वोट बैंक पर कब्जा करते हुए जीत दर्ज की। हालांकि, अपने कार्यकाल के दौरान वह स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती रहीं, लेकिन क्षेत्र की समस्याओं को राज्य और केंद्र सरकार के सामने उठाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।
चुनावी रणनीति और भविष्य की तैयारियां
केदारनाथ उपचुनाव को लेकर भाजपा पिछले दो महीनों से क्षेत्र में सक्रिय है। टिकट के दावेदारों की धड़कनें तेज हो चुकी हैं और दोनों पार्टियों में चुनावी बैठकों का दौर शुरू हो गया है। आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी का प्रत्याशी जनता का दिल जीत पाता है और कौन सा नेता केदारनाथ विस की सीट पर कब्जा जमाएगा।
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