हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर मातृभाषा गढ़वाली पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला विश्वविद्यालय की शैक्षणिक क्रियाकलाप केन्द्र चौरास परिसर के भाषा प्रयोगशाला (लैंग्वेज लैब) सम्पन्न हुआ। इस कार्यशाला का शुभारंभ लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो एमएस नेगी, प्रो डीआर पुरोहित, मुख्य नियंता प्रो बीपी नैथानी ने दीपप्रज्वलित कर किया।
इस कार्यशाला का विषय था ‘‘गढ़वाली की भाषिक परंपरा एवं चुनौतियां‘‘ . जाहिर है इसविषय पर सभी वक्ताओं ने अपनी बात रखी। मगर जब नरेंद्र सिंह नेगी की बरी आई तो लोग उत्सुकता से उन्हें सुनने लगे।
बतौर मुख्य वक्ता नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि “हमारे लिए ये बहुत खुशी की बात है कि गढ़वाल विवि द्वारा गढ़वाली भाषा के लिए कार्य किया जा रहा है और उम्मीद की जा सकती है कि वह गढ़वाली भाषा को आगे बढ़ाएंगे।” फिर इस विषय पर वो अपने अनुभवों का जिक्र करने लगे।
उन्होंने कहा कि “जब मैं गढ़वाली गीत गाता था तो अक्सर लोग कहते थे, कि गढ़वाली गीतों में क्या रखा है..? फिल्मी गीत गा ! ये कहने वाले सारे लोग इसी भाषा के जन्मे थे। ये सुनकर दुःख तो हुआ लेकिन तब मैंने उन लोगों की ओर ध्यान नहीं दिया। आज वही बात करने वाले आज चुप हैं क्यूंकि गढ़वाली भाषा को एक नई पहचान मिल रही है और इसमें परिवर्तन आ रहा है। यही कारण है कि आज विश्व भर से शोधार्थी शोध के लिए यहां आते है और हमें अमेरिका, कनाड़ा जैसे देशों में गढ़वाली गाना गाने के लिए बुलाया जाता है।
उन्होंने कहा “ये हमारा दुर्भाग्य है कि गढ़वाल विश्व विद्यालय ने गढ़वाली भाषा को लेकर आज तक कोई भी काम नहीं किया। अब विवि इन दिशा में कार्य कर रहा है ये बहुत खुशी की बात है कि गढ़वाल विवि द्वारा गढ़वाली भाषा के लिए कार्य किया जा रहा है और उम्मीद की जा सकती है कि वह गढ़वाली भाषा को आगे बढ़ाएंगे।”
आज गढ़वाली भाषा का प्रचार प्रसार तेजी से हो रहा है और युवा पीढ़ी को इसकी ओर जागरूकता के लिए कार्य करने की जरूरत है।” कार्यशाला में मौजूद प्रो.डी आर परोहित ने कहां कि “गढ़वाली भाषा में अब तक 15 हजार से ज्यादा साहित्य छप चुका है। इसके अलावा कई गढ़वाली, कुमाउनी,जौनसारी भाषा डिक्शनरी अब तक मौजूद है। साथ ही आज के समय में जो कुछ भी गढ़वाली भाषा में लिखा जा रहा है वो सब हमारी भाषा की एक उपलब्धि है। जिसके लिए युवाओं को लगातार कार्य करना होगा। उन्होंने कहां की अंग्रेजी भाषी लोग गढ़वाली भाषा को देश विदेशों तक और तीव्र गति से पहुँचा सकते है।”