एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार, राज्य में हरेला महोत्सव 17 जुलाई को मनाया जाएगा और राज्य सरकार ने उस दिन छुट्टी की घोषणा की है। इससे पहले 16 जुलाई को त्योहार के दिन राजकीय अवकाश घोषित किया गया था। लेकिन बाद में, राज्य सरकार ने राज्यपाल द्वारा अनुमोदित एक अधिसूचना जारी की, जिसमें तारीख 16 जुलाई से बदलकर 17 जुलाई कर दी गई।
उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार कई अनेक पर्व मनाए जाते हैं । यह पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं , वहीं पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए, इन्हीं खास पर्वो में शामिल, हरेला उत्तराखंड में एक लोकपर्व है| हरेला शब्द का तात्पर्य हरयाली से हैं| यह पर्व वर्ष में तीन बार आता हैं| पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में तथा तीसरा व् वर्ष का आखिरी पर्व हरेला आश्विन मास में मनाया जाता हैं |
विशेष रूप से, हरेला त्योहार उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने राज्य अवकाश घोषित किया है।
हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। हरेला अच्छी फसल का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो।
मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा। गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता हैं गाँव के लोग द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोई जाती हैं| और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं|
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